जब मैंने जन्म लिया ,
तब से ही
मैंने शुरू किया ,
प्रहार झेलना ,
पुरुषों के बनाये हुए नियमों की,
बंदिशों
से मैं लहू लुहान हुई ,
किन्तु मरी नहीं ,
क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ ,........
इसलिए मैं जिन्दा हूँ ,
मैं जिस रास्ते से होकर चलती हूँ.
उस
पर कांटे बिछे हुए हैं ,
मैं अपनी रफ़्तार कितनी भी तेज करुँगी ,
मेरे
अतीत में वे उतने ही ज़ख्म डालेंगे ,
मुझे
मेरी सीमित बातचीत ,
सीमित राह, सीमित इच्छायों ,
और सीमित सपनों के
बारे में ,
सम्यक ज्ञान दिया जायेगा ,
मुझे
मजबूर किया जायेगा ,
दुर्बल, कोमल, भीरु और लाजबन्ती होने के लिए ,
फिर
वो मुझे अबला का नाम देंगे ,
फिर भी
वो मुझे रोक नहीं पाएंगे ,
न ही पूर्ण कर पाएंगे वो अपना नरमेघ यज्ञ ,
क्योंकि
मैं चिरंजीवी हूँ ,
और जब मैं इस दुनियां में आयी थी ,
तभी मैंने
प्रण कर लिया था ,
नहीं पूरी करनी देनी है ,
मुझे मंशा उनकी
और ,
उन्हीं के दायरे में ही मुझे रहकर ,
आगे
और उनसे कहीं आगे बढ़कर दिखाना है ,
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